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कविता

आवागवन

मुंशी रहमान खान


जग में आवागवन है कोई आवै कोई जाय।
विविधि भांति तन पावहीं करनी का फल पाय।।
करनी का फल पाय जीव कहिं चैन न पावै।
ईश करैं वहं न्‍याय पाप तोहि धर पकरावै।।
कहैं रहमान मुक्ति तुम चाहहुँ जाय गिरहु प्रभु पग में।
कटैं कोटि बाधा अमित फिर नहिं आवहु जग में।।

 

 


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